राज ठाकरे वही कर रहे हे जो ६० के दशक मे उनके चाचा बल ठाकरे ने किया था राज उसी विष बेल से फल प्राप्त करने कि कोशिश मी है जो उनके चाचा को भी कुछ नही दे पाई .मुम्बई कि सडको पर बिहारियों ,और उ.प.के भैय्याओं कि पिटाई उस फल को पाने का ही घटिया प्रयास कहा जाएगा .राज ठाकरे कि मुम्बई कि जरा कल्पना करिये सुबह जब आप उठेंगे तो आप के दरवाजे पर कोई भैय्या दूध कि बाल्टी लिए खड़ा नही होगा आप को खुद ही दूध लाना हे .कम पर जाते समय कोई मुस्कुराता टैक्सी ड्राईवर नही होगा और लंच के बाद जब आप पान खाना चाहेंगे तो बनारसी पान से अआप को मरहूम रहना हे .रात को जब आप सिनेमा घर जायेंगे तो वहा न अमिताभ
होंगे न शारुख न दिलीप कुमार न कपूर खानदान ,ऐसी मुम्बई तो शायद राज और उनके पट्ठे भी ज्यादा दिन तक सहन नही कर पाएंगे .बेहतर हो कि सब मिल कर राज के अंदर के उस भस्मासुर को रोके जो आखिरकार भले ही उनके सिर पर हाथ रखने वाला हे
3 comments:
but this is a natural tendeny, manis a unsoial animal.
aapne raj thakre aur unki napunsak sena ko bilkul sahi tarike se paribhasit kiya hai....
ek purani kahawat hai.jo apni vichardhara ko theek se nahi samjhta hai vah uske liye jan bhi de sakta hai.Raj bhi aise hi hai.unke liye itna hi kaha ja sakta hai'he iswar inhe maf kar dena ye nahi jante ki ye kya kar rhe hai.
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