Thursday, January 14, 2010
तेरे कूचे से हम बड़े बेआबरू होकर निकले
मेरे सपनो की दुनिया में एक खूबसूरत सा शहर था ,
जिसके पास एक शजर था जहाँ एक लड़की का घर था ,
जब जब में वहाँ से गुजरता था ,
अक्सर एक ही बात किया करता था ,
की तेरे कूचे से हम बड़े बेआबरू होकर निकले ।
एक समय की बात थी ,
जब मुझे उसकी तलाश थी ,
बस यही गुनाह मै रोज़ किया करता था ,
दिन मै २-३ बार उसके घर के चक्कर काट लिया करता था ,
और उस मोहल्ले के मवालियों को अक्सर ललकारते हुए कहा करता था
की तेरे कूचे से हम बड़े बेआबरू होकर निकले
जब जब वो लड़की मेरे मोबाइल पर मिस कॉल करती थी
तो मै सोचता था की दुनिया मै बस वही एक मिस है जो मुझे कॉल करती थी
मिस का कॉल आते ही मै अपनी बाइक लिए फिर उसी मोहल्ले की तरफ निकल पड़ता था
किसी की न सुनता और कभी कभी घरवालो से भी लड़ लिया करता था
और मोहल्ले से गुजरते हुए उसकी आँखों मै देखते हुए कहता था
की तेरे कूचे से हम बड़े बेआबरू होकर निकले ।
इस तरह धीरे धीरे बात आगे बढ़ने लगी
और जिन्दगी की रेलगाड़ी प्लेटफॉर्म पर चढ़ने लगी ,
पर मुझे नहीं पता था की इस प्लेटफॉर्म पर बहुत से कुली खड़े होंगे
जो उसके लिए हसते हसते सूली चढ़ने चले होंगे
एक दिन मुझे पता चला की आज उसकी शादी है
मैंने सोचा अब और क्या बचा बाकी है
मै फिर से अपने दुःख को समेटे उसकी मोहल्ले की तरह यह कहते हुए निकल पड़ा
की आज भी तेरे कूचे से हम बड़े बेआबरू होकर निकले
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7 comments:
चाहिए तो ये था :
"तेरी गलियों में न रखें गे कदम
आकज के बाद ........."
are ye sab to thik tha par jo kuche tha wo kya tha?par jo bhi tha acha tha.....gud....nice kuche....sapno ke rani ki sahdi bhi ho jati hai...waaaaaaaaaah!!!!kya baat hai..fir uski gali mai jane ki kya baat thi...bhul jana apke liye better satyarth jii....
nice yaar.......vaise us ladki ka naam kya tha????tell m
bahut achha tha yar awesome par thoda sad
gud one
apne is talent ko aise hi publish krte rho
kbhi bhi isspr rok mat lagana ok
gud luck
hv fun
hey great......perfect blend of poetry n humour!
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