Saturday, February 9, 2008

नफरत की विरासत

राज ठाकरे वही कर रहे हे जो ६० के दशक मे उनके चाचा बल ठाकरे ने किया था राज उसी विष बेल से फल प्राप्त करने कि कोशिश मी है जो उनके चाचा को भी कुछ नही दे पाई .मुम्बई कि सडको पर बिहारियों ,और उ.प.के भैय्याओं कि पिटाई उस फल को पाने का ही घटिया प्रयास कहा जाएगा .राज ठाकरे कि मुम्बई कि जरा कल्पना करिये सुबह जब आप उठेंगे तो आप के दरवाजे पर कोई भैय्या दूध कि बाल्टी लिए खड़ा नही होगा आप को खुद ही दूध लाना हे .कम पर जाते समय कोई मुस्कुराता टैक्सी ड्राईवर नही होगा और लंच के बाद जब आप पान खाना चाहेंगे तो बनारसी पान से अआप को मरहूम रहना हे .रात को जब आप सिनेमा घर जायेंगे तो वहा न अमिताभ
होंगे न शारुख न दिलीप कुमार न कपूर खानदान ,ऐसी मुम्बई तो शायद राज और उनके पट्ठे भी ज्यादा दिन तक सहन नही कर पाएंगे .बेहतर हो कि सब मिल कर राज के अंदर के उस भस्मासुर को रोके जो आखिरकार भले ही उनके सिर पर हाथ रखने वाला हे