Saturday, August 28, 2010

ब्रम्ह सत्यं जगत मिथ्या ...


एक बूंद भर उजाले की टंकार
चहुँओर हाहाकार
बंद कमरे की तपिश
चंद आकांक्षाओ से लबालब कशिश
गरीब के आँखों से बहते निर्झर झरने
नेताओ के चौराहों - नुक्कड़ो पर धरने
कोई दिखाए ना दया
ब्रम्ह सत्यं जगत मिथ्या ।


जल रहे है अंदर ही अंदर
कहाँ गए बापू के वो तीनो बन्दर
सत्य - अहिंसा कौड़ियों के भाव बिक गयी
सत्ता भी जैसे तैसे चल गयी
बेसुध घूमते अत्याचारी , बलात्कारी
पाप की लंका है निरंतर , सकुशल जारी
मन में कोई भय ना हया
ब्रम्ह सत्यं जगत मिथ्या


महामारी का दौर है
दवाइयों पर गौर है
बड़ी मेहनत से सपनो का खेत था जोता
बिना घूस के काम ही नहीं होता
कल्पनाओ को मुखाग्नि देकर
निकल पड़ते है लज्जित से भावविहीन होकर
काम की तलाश में दिल्ली , पटना या गया
ब्रम्ह सत्यं जगत मिथ्या ।

Wednesday, August 4, 2010

कराहते मुल्क में कॉमनवेल्थ का काकस


आजादी के ६३ साल बाद तक भी गुलामी की जिन निशानियो को हम छाती से चिपकाये घूम रहे है उनमे से एक है कॉमनवेल्ट गेम । कॉमनवेल्थ क्या है ? कॉमनवेल्थ वो देश है जो अंग्रजो के उपनिवेश , गुलाम देश रहे है जिनका खून चूस - चूस कर ब्रिटेन की समृद्धि का महल खड़ा किया गया । ऐसे लगभग १५ देश है और ये मिलकर जब खेलते है तो इसे ही कॉमनवेल्थ गेम कहा जाता है । इसके उदघाटन में ब्रिटेन की महारानी के प्रतिक के रूप में एक छड़ी लाई जाती है जिसे क्वीन्स बेट कहा जाता है फिर ये तमाशा परवान चढ़ता है । दिल्ली में इस नौटंकी के लिए २०० करोड़ रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे है , इस खेल में जो होगा वो तो होगा ही इसके पहले ठेकों , रिश्वत और टेंडर का खेल खेला जा रहा है । इस धमाचौकड़ी में नेताओ और ठेकोदारो की पांचो उंगलिया घी में नहीं है पूरा बदन कढ़ाई में डूबा हुआ है जिस पर मक्खिया भिनभिना रही है ।
उस देश में जहाँ लाखो बच्चे फ़ुटबाल की गेंद नहीं पहचानते , विद्यालयों में खेलने को तो दूर पढने की भी जगह नहीं है वह ये तमाशा कब तक जायज़ है, इन पैसो से पूरे देश में खेलकूद का इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार हो सकता है , मैदान बन सकते है और पूरी युवा पीढ़ी को खेल संस्कृति से नहलाया जा सकता है लेकिन ये नहीं हुआ इसके बजाये हुआ है दिल्ली के सौन्दर्यीकरण के नाम पर गरीबो की बर्बादी । चूँकि कॉमनवेल्थ गेम है इसलिए विदेशी गोरे आयेंगे उन्हें कही झोपडी ना दिख जाये वरना देश क नाक कट जाएगी । दिल्ली वासियों को भले ही पिने का पानी न मिले पर परदेसियो को एक्वाफिना और बियर जरुरी है , दिल्ली के स्कुलो में बच्चो को मध्यान्ह भोजन न मिले पर गोरो को बीफ (गो मांस) परोसने की तैयारिया हो चुकी है , जो विरोध कर रहे है अगर वो सत्ता में होते तो खुद इस बाजीगरी पर ठुमक रहे होते । खेल के नाम पर या तो इस देश में क्रिकेट पर जुआ होता है या ऐसे हात बाज़ार । सही में अगर हमारे कर्णधार खेलो का भला चाहते तो देश में हाकी और फ़ुटबाल की ये महादशा नहीं hoti ।