Tuesday, September 7, 2010

कमबख्त बालतोड़

शारीरिक दंगल ,
ह्रदय अमंगल ,
चेहरे का मर्म ,
रोगान्तक चर्म ,
असहनीय पीड़ा ,
मनो कम्बल में घुस गया हो कोई कीड़ा ,
बन गई है जी का जंजाल,
ये अप्राकृतिक नपुंसक चाल ,
प्रबल हुई आत्मसमर्पण की भावना ,
पूरी हुई नंग्न विचरण की कामना ,
ऐसे ओढ़ी जा रही है चादर ,
मनो गागर में सागर ,
सबकी यही गत्या है ,
यह तो शाश्वत सत्य है ,
ख़त्म हुई शारीरिक सौंदर्य की होड़ ,
उफ़ ! ये कमबख्त बालतोड़ ।


बदली दिनचर्या , छूटे विलास भोग ,
चरमोत्कर्ष पर आ चूका है यह रोग ,
इसी रोग की सौगात है ,
की गुसलखाने में सोना जैसे अब आम बात है ,
आयुर्वेद बेअसर , एलोपैथी मना है ,
बहुत बड़ी विडम्बना है ,
निढाल नेत्र , असहाय शारीर ,
करवाते बदलती मेरी तकदीर ,
बड़ी भयंकर मज़बूरी है ,
ये फोड़ा तो नासूरी है ,
निगाहें फलक पे है
जान हलक में है
यही है सादा जीवन उच्च विचार का निचोड़
उफ़! ये कमबख्त बालतोड़ ।