Saturday, April 18, 2009

एक लौ इस तरह क्यों बुझी मेरे मौला ??

गर्दिशो में रहती , बहती गुज़रती जिंदगी यहाँ है कितनी
इन में से एक है तेरी मेरी या नही
कोई एक जैसी अपनी , पर खुदा खैर कर ऐसा अंजाम
किसी रूह को न दे कभी यहाँ .............
बच्चा मुस्कुराता एक वक्त से पहले क्यों छोड़ चला तेरा ये जहाँ
एक लौ इस तरह क्यों बुझी मेरे मौला , एक लौ जिंदगी की मौला

ये गाने की लाइने जब भी पढता हूँ सच में रूह कांपने लगती है , रौंगटे खड़े होने लगते है .................. कल मेने अख़बार पढ़ा ओर मेरी नज़र एक ख़बर पर पड़ी ............ उसमे लिखा था की एक ११ साल की बच्ची को मास्टरनी ने धूप में खड़ा किया। उस मासूम बच्ची के कंधे पर ईट रखवा कर २ घंटे तपती धूप में खड़ा रखा । बाद में वो छोटी सी बच्ची इस कारन कोमा में चली गई ओर फ़िर उसकी मृत्यु हो गई ।
ये घटना है देहली के एक स्कूल की उस मास्टरनी का नाम मंजू है जिसके खिलाफ पहले तो कोई एक्शन नही लिया गया बाद में जब मीडिया के द्वारा दबाव डाला गया तब जाके उसके खिलाफ केस दर्ज हुआ । क्या हालत है हमारे देश की? क्या कसूर था उस मासूम का ? उसका नाम शन्नो था ये ?? या वो मासूम को ने कुछ सवालों के जवाब नही दिए इसलिए ?? पहले भी कुछ इस तरह की घटनाये सामने आई है लेकिन फ़िर भी इस तरह की घटनाये होना इतना लाज़मी है । क्या भारतीय शिक्षा हमे ये सिखाती है की सिर्फ़ मार पीट के ही बच्चो को सुधार जा सकता है??
क्या बच्चो को समझाना से कोई फर्क नही पड़ता ??
और क्यों इस तरह की मानसिकता वाले लोगो द्वारा शिक्षा दी जाती है? ये कहा तक सही है ???
इन सब के जवाब हमे कौन देगा सरकार?? वो तो हमेशा के तरह मुह फेर लेगी , तो क्या वो मास्टरनी जवाब देगी?? या फ़िर उस बच्ची के माता पिता जिनको अब कुछ कहने के लिए बचा नही है उन पर क्या बीत रही है वो तो वही समझ सकते है ..........
कब तक शिक्षा के विद पर मासूमो की बलि दी जाती रहेगी ???
आज मेने एक न्यूज़ चेनल पर देखा की बच्ची के लिए इंसाफ मांगने आए लोगो पर पुलिस लाठी चार्ज करती है ।
ये कहा का इन्साफ है ?? क्या अब इस देश से इंसाफ की उम्मीद करना भी एक ढकोसला है ??/
ऐसे कई सवाल जो आज हमारे दिमाग में चल रहे इसका जवाब कौन देगा ??

चलिए इस बात से हट के ५ मिनिट हम सोचते है आज के बच्चो के बारे में - अपने देखा ही होगा की बच्चो पर छोटी सी उम्र में ही पडी का कितना बोझ रहता है । हर बच्चे के बैग में आज १५ से २० कोपिया रोज़ भरी रहती है बच्चा जब बड़ा सा भारी बैग अपने छोटे छोटे कंधो पर लेकर चलता है तो ऐसा लगता है मनो कोई पर्वतारोही हो ।
बड़े बड़े मनोचिकित्सक भी कह चुके है की बच्चा जब तक ५ साल की उम्र पार नही कर लेता तब तक उससे स्कूल में भरती मर करिए । फ़िर भी पलक नही समझते है ओर बच्चो को कच्ची उम्र में ही स्कूल में भरती करवा देना ये आजकल एक शगुल सा बन गया है, आज कल के बच्चे स्कूल जाते है और आकर ३-४ घंटे अपना होमवर्क करते है खेलना तो जैसे आजकल बच्चो के लिए गुनाह हो गया है । क्युकी मेट्रो सिटी का तो यही कांसेप्ट है। क्या इतनी काची उम्र में बच्चो पर इतना बोझ डालना कहा तक सही है ?
क्या उनकी कोई भावनाए नही होती ??
इन सब सवालो का जवाब तो हम न जनकब से खोज रहे है लेकिन शन्नो जैसे बच्चो की बलि चढ़ जन के बाद भी हम नही सुदर सकते ।
अब क्या जरुरत थी उस शिक्षिका को एक मासूम सी फूल जैसे छोटी सी बाची को इतनी बुरी सजा देने की वो भी सिर्फ़ इसलिए की उससे इंग्लिश में कुछ ऐ बे सी डी नही आती थी अगर ये गुनाह है तो क्या हमे भारत के उन सभी बच्चो को मात देंगे जिनको ये - अंग्रेजी में अनाराम नही आते ???
ऐसे कई चीजे है जो अक्सर सवाल छोड़ जाती है हमारे लिए जिनका जवाब हम खोजना तो चाहते है पर नही खोज पाते यही हमारे यहाँ का दुर्भाग्य है ।
में पूछना चाहूँगा कब तक शिक्षा के विद पर मासूमो की बलि इस तरह दी जाती रहेगी???????????

मासूम कलियों की कीमत तुम क्या जानोगे

तुम्हारे आँगन में तो सीधे फूल खिलते है ।

कृपया पत्रकार गण से निवेदन है की जूते- चप्पल बाहर उतार कर प्रवेश करे

शाना जूता कुछ नही कहता
पड़ते फ़िर क्यों हो हल्ला होता

चलिए आप तो जानते ही है किस तरह कुछ दिनों से जूता फेकने का कुछ नया चलन चल गया है । इसकी शुरुवात कुछ समय पहले हुई जब बुश पर एक जूता फेका गया ...............
बेचारे सैम अंकल - जब इराक पर कब्जा किया था तब जब सद्दाम हुसैन की मूर्ति को लोग जूते मार कर गिरा रहे थे तब हमारे सैम अंकल ने कहा था की जूते का नम्बर १० था । वह बुश साहब क्या अपने गौर किया की जो जूता आपके ऊपर पड़ा था उसका नम्बर क्या था ?? तब तो आप इसे भागे जैसे किसी कुत्ते को आपके पीछे छु करवा दिया हो ।
ये तो बात थी हमारे सैम अंकल की। उसके बाद तो मानो जूते फेकने का कोई फैशन शुरू हो गया हो ....... कई लोग तो जूतों की बढ़िया क्वालिटी के लिए दुकानों पर दर-दर भटकते दिखाई दिए की कही से ऐसा जूता तो मिले जो किसी न किसी के नाक तोड़ सके ।
बुश के बाद बरी आई चाइना के प्राइम मिनिस्टर की जिन पर लन्दन में जूता फेका गया । बेचारे कर भी क्या सकते थे उनके देश में किसी ने फेका होता तो बिचारा किसी कोठरी में पड़े पड़े अपने अन्तिम दिन गिन रहा होता ..............
उसके बाद कुछ छुट पुट घटनाये होती रही लेकिन भारत ने भी सोचा चलो हम भी शुरू हो जाए पर मरे किसको ...........
तभी कांग्रेस ने एक बहुत बड़ी गलती कर दी अपने को सबसे बड़ी सेकुलर पार्टी कहने वाली कांग्रेस के मुह पर तब तमाचा पड़ा जब उसने १९८४ में सिक्ख दंगे भड़काने वाले टाईटलर को ही लोकसभा टिकिट दे दिया ये कहा का इंसाफ है????
अपने वोट बैंक टाईट करने के लिए आपको क्या टाईटलर ही मिला क्या ????????//
फ़िर होना क्या था एक हमारा सिक्ख भाई भावनाओ में बह गया ओर उठाया मस्त जूता ओर दे मारा चिदंबरम पर
और कांग्रेस तो ठहरी उदारवादी उसने तो माफ़ भी कर दिया । हां हां माफ़ क्यों नही करोगे इतनी बड़ी गलती जो आपने की है उसके सामने तो येछोटी ही बात है ।
में भी सोचने लगा में किसको मारू???? अरे पर क्या जूता मरने से ये कौन सी हमारी मांगे मांग लेंगे ।
में भी अपनी एक लिस्ट तैयार करने में लगा हूँ । क्युकी मौका देख के चौका तो हम भी मर सकते है न
अब ये पोलितिशन बाज़ तो आने से रहे ओर भारत में तो जूता मरना कोई इतनी बड़ी बात भी नही है किसी भी गईमें चले जाओ कोई न कोई पीड़ित पति अपने पत्नी कोई जूते से पीटता ही मिलेगा ।
अब ये सरकार देश में बेरोज़गारी दूर करने से तो रही तो अगर हर बेरोजगार व्यक्ति एक एक जूता भी मरने लगा तो एक जूतों का कारखाना लगाया जन सकता है ।
खैर इन सबकों से भी अगर सरकार ने कुछ सिखा तो वो ये नही की देश का कुछ भला करे सीखा की देश में जूते के कारखानों का पता लगाया जाए ओर कड़क कुँलिटी का जूता बनने वालो पर रोक लगा दी जाए ।
अरे आप कितने लोगो कोई जूते मरने से रोकोगे अगर देश की जनता एक जुट हो गई न दिन भर जूते ही खाते नज़र आओगे ...........
खैर अगर कोई नेता इसे पड़े तो माफ़ी चाहूँगा भइया नही तो कही हमे घर से उठवा लिया तो हमे तो नेताओ से बड़ा डर लगता है भइया ..................... में तो छोटा सा नन्हा सा बच्चा हु मुझे कुछ करना मत ...................
चलो अगर जिन्दा रहे तो फ़िर मिलेंगे नही तो हरिद्वार में मिलेगे ।
लेकिन आप तो लिखते ही रहना इस देश में होने वाले हर ग़लत काम के खिलाफ .................

हा पर आचे क्वालिटी के जूते खरीदना मत भूलियेगा

वंदे मातरम