
हिन्दी की फेमस कहावत है की "अंधा बाटें रेवड़ी , अपने अपने को देई " आज काफी सालो बाद इस कहावत से साक्षात्कार हुआ है । किसी ने सही ही कहा की जब अंधा आदमी रेवड़ी बाटता है तो ख़ुद को ही देता .
वैसे नोबल कमिटी की तरफ़ से बयां आया है की -" ओबामा ने जिस तरह से दुनिया का ध्यान अपनी तरफ़ खीचा और अपने लोगो को बेहतर भविष्य की उम्मीद जगाई वैसा कोई बिरला नही कर पता "
९ अक्टूबर २००९ शायद दुनिया के इत्तिहास में दर्ज होने वाली तारीख थी जब अमेरिका के प्रेसि। ओबामा को नोबल पुरस्कार दिया गया
वैसे तो ओबामा को शान्ति के लिए नोबल पुरस्कार मिलना एक अचम्भा ही कहा जा सकता है क्युकी नोबल पुरस्कार के लिए नोमिनेशन की जो आखरी तारीख थी वो '१ फरवरी ' थी परन्तु ओबामा राष्ट्रपति २० जनवरी को बने तो क्या इतनी जल्दी से ही फ़ैसला हो गया की ओबामा साहब तो शान्ति के दूत बन कर इस धरती पर उतरे है ।
और अमेरिका के किसी प्रेसिडेंट को नोबल प्राइज दिया जन वो भी शान्ति के लिए ये तो एक हस्स्यस्पद बात कही जायेगी ।
वैसे मनमोहन सिंह ने इस पर काफी खुशी जताते हुए ये कहा है की ओमाबा एक इसे व्यक्ति है जिन्होंने ये कहा है की -" आज के अमेरिका की जड़े महात्मा गाँधी के भारत से निकलती है " वाह !! काश ओबामा यह कहते की आज के अमेरिका की जड़े सोनिया गाँधी के विचारो से चलती है तो जनाब मनमोहन सिंह तो ओबामा को बिना मरे ही परमवीर चक्र दे देते। वैसे इरान के प्रेसिडेंट ने कहा है की - ओबामा को नोबल मिलने से हम अपसेट नही है बस उम्मीद करते है की अब तो वो दुनिया से नाइंसाफी मिटने के लिए व्यावहारिक कदम उठाना शुरू करेंगे ।
वैसे ओबामा ने कुछ शान्ति कयाम करने का भरसक प्रयास भी किया जैसे - नॉर्थ कोरिया के साथ कामियाब डिप्लोमेसी करने की कोशिश की, मुस्लिम देशो को साथ लेने की कोशिश की , ४८ साल बाद इरान और म्यांमार जैसे देशो से बातचीत के रस्ते निकले , वैसे ओबामा की ग्लोबल डिप्लोमेसी का फोकस था मुस्लिम जगत तक पहुचना ।
पर क्या इतने काम काफ़ी है नोबल पुरस्कार पाने के लिए ये , क्युकी इतिहास गवाह है की अमेरिका के प्रेसिडेंट हमेशा बदलते है परन्तु उनके देश की नीतिया कभी नही बदलती । और अगर बात शान्ति का है तो ओबामा का ट्रैक रिकॉर्ड अभी भी बुश से किसी मायने में काम नही है , उनके सत्ता में आने के तुंरत बाद ही उत्तर कोरिया ने परमाणु परिक्षण किया और इरान भी काफी हद तक पहुच ही गया है , पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार इराक से अमेरिकी फौजे वापस आने थी परन्तु ऐसा नही हुआ , उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अफगानिस्तान की है जहाँ हालत दिन पे दिन बिगड़ते ही जा रहे है , पकिस्तान में ओबामा बुश की गलतिया दुगने उत्साह से दोहरा रहे है क्युकी उसे दी जान वाली सहायता राशी ३ गुनी कर दी गई है बगैर ये जाने की वो दी जाने वाली राशि का उपयोग अपने पड़ोसी देशो में आतंकवादी गतिविधियों के लिए तो नही कर रहा है , क्युकी हाल ही में पकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ की तरह से बयान आया है की अमेरिका से दी जाने वाली सहायता राशी का उपयोग भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में किया गया था ।
अंकल सेम के इस देश ने ही आज पुरी दुनिया में इतनी समस्याए खड़ी कर दी है की जिससे पार पाना बहुत मुश्किल हो गया है , भारत में व्याप्त कश्मीर समस्या के लिए भी अमेरिका ही जिम्मेदार है , अफगानिस्तान में तालिबान को अमेरिका ने अपने फायदे के लिए खड़ा किया जब वो उसी के लिए भस्मासुर बन गया तो फ़िर उसे ही मारने चला , दुनिया में सबसे ज्यादा एटमी हथियार आज अमेरिका का पास है , अमेरिका का इराक पे हामला करने का मकसद भी अब साफ़ हो गया है जब वो पुरी दुनिया को इराक का तेल सप्लाय कर रहा है , पकिस्तान में ड्रोन हमले अभी भी जारी है , हर देश में अपना सैनिक अड्डा बनाना अमेरिका का हमेशा से ही मकसद रहा है , दुनिया आज ये भालीभाती जान गई है की हर देश में मल्टीनेशनल कंपनीया लगा कर माल कमाने के आलावा अमेरिका ने आजतक कुछ किया नही है ।
ओबामा को नोबल पुरस्कार दिया जान वो भी शान्ति के लिए , फ़िर तो इस वाकिये पर वासिम बरेलवी का एक ही फेमस शेर याद आता है जो अगर वासिम बरेलवी साहब ने नही लिखा होता तो शायद ओबामा के द्वारा ही लिखा गया होता की -
जिंदगी तुझपे अब इल्जाम क्या रक्खे
तेरा एहसास ही एसा है की तनहा रक्खे।