Monday, September 7, 2009

मेरा लख्तेजिगर और उसकी बाबा ब्लैक शिप

पोथी - पोथी बछुआ पढ़या न मिलिया कोई
ढाई आखर अंग्रेजी का रटे सो इंटेलिजेंट होई ।

क्या कभी कोई नौकरानी को अपनी माँ से बदला जा सकता है ???......... सोचने वाली बात है पर हमे तो ऐसा पिछले ६० सालो से करते आ रहें है ओर आश्चर्य की बात तो ये है की बिना किसी पछतावे के .... हमने अपनी माँ हिन्दी को बड़ी आसानी से नौकरानी अंग्रेजी से बदल दिया ..... ओर हमारी ही मात्रभाषा हिन्दी की हालत एक एसे मरीज़ की तरह होगई है जो स्वाइन फ्लू की लास्ट स्टेज में आ चुका हो जो बखूभी जनता हो की उसकी मौत शान भर में ही होने वाली है ।
बच्चो की स्कूल तो शुरू हो ही चुके है जैसा की आप देख सकते है रोज़ बहुत से एकलव्य अपना १०किलो से भरा झोला टांगे (पढाई की दुकान) कॉन्वेंट ओर पब्लिक स्कूल में जाते दिखाई देते है .........
हमारी सरकार ने जिसतरह शिक्षा के शेत्र में निजीकरण का रास्ता अपनाया है वह हमे एक गहरी खाई की तरफ़ ले जाएगा जहा से निकलना मुश्किल हो जाएगा .....
शिक्षा के क्षेत्र में किया गया ये निजीकरण ने सरकारी स्कुलो ओर प्राइवेट स्कुलो के बच्चो के बीच एक ऐसा अवसाद पैदा किया हुआ है जिससे अंग्रेजी न जाने वाला बच्चा आसानी से हीन भावना का शिकार हो जाता है।
आज हमारा लख्तेजिगर ( जिगर का टुकडा ) जब बाबा ब्लैक शिप की पोएम सुनाता है तो उसके बाप का सीना गर्व से चौडा हो जाता है, वही बाप जिसके बाप का सीना गर्व से जब चौडा हुआ था जब उसने मछली जल की रानी है कविता अपने बच्चे के मुह से सुनी थी । आज के लाख्तेजिगारो को ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार ओर जिंगल बेल तो बखूबी याद है ये लेकीन उन से यदि आपने किसी हिन्दी कविता के बारे में पुछा तो वो गर्व से कहेगा की में इग्लिश मीडियम में पड़ता हूँ , ओर मच्दोनाल्ड में बुर्गेर खता हु नही की किसी ठेले पर सडी हुई पानी पुरी , में ब्रिस्लेरी का चिल्ड वाटर पीटा हु नही की किसी नल पर मुह लगा कर पानी पीता हु , में भगत सिंह नही कूल डूड बनना चाहता हु ।
आम बोलचाल की भाषा हिन्दी होने के बावजूद भी मात्रभाषा को इतना अपमान सहना पद्रह है । वो संसद जो हमारे गरीबो से हिन्दी में वोट मांगने आते है वो गरीबी संसद में इंग्लिश में क्यों डिसकस करते है, वो क्रिकेटर के बारे में आपका क्या ख्याल है जो हिन्दी के टुकडो में पल कर सारा दिन इंग्लिश में ही बात करते है .... शायद ग्लोब्लिज़शन का ज़माना है , पश्चिमी सभ्यता को गर्व से अपनाया है तो ये सब तो गर्व से सहना ही पड़ेगा ।
खैर हिन्दी तो आई सी यू मै भरती हो गई बस उसके दिल की धड़कन बंद करने का इंतजार कर सकते है हम तो अपनी आंखे मूंद कर ..... करने को तो बहुत किया जा सकता है लेकिन हमारे राजनेताओ मे भी तो इच्छाशक्ति की कमी है न ये बस खाना जानते है ओर डकारना ....
समाज मे जो दो तरह के वर्ग तैयार हो रहे है वह आने वाली हमारी भावी पीढी को एक ऐसी सामाजिक विषमता की और ले जाएगा जहा से हमारा भारत दो अलग तरह की जातियों मे विभाजित हो जाएगा एक तो सरकारी स्कूल से पड़ने वाली ओर दूसरी कॉन्वेंट स्कूल वाली । खैर ये इंडिया और भारत के बीच का फर्क है इससे पार पाना बड़ा मुश्किल है जहा लोगो को सिर्फ़ अपने काम से मतलूब है देश के बारे मे सोचने वाली भावी पीढी जिसकी नेहरू ने कल्पना की थी वो तो अधर मे लटकी हुई है ।
मारवाडी मे एक काफी चर्चित कहावत है - दुनिया जावे भाड़ जोतने
आपने कई करनो।

3 comments:

vedmishra said...

barson se angrezi ka juva gardan par rakhe ham bhasha ka khet jot rahe hain.hindi ko agar koi uska sthan dila sakta he to vo he hamari sansad par iski koi sambhavna dikhai nahi de rahai kyongi dusri bhashaon vale darte hain ki hindi agai to ham pichhad jayenge unhe pahle vishwas me lena hoga ki tumhe tumhari bhashaon ko bhai agar koi khatra he to hindi se nahi angrezi se he.wastav me durbhagya he ki hamari suprime courte me hindi me na to faisla sunaya ja sakta he na bahas ki ja sakti he.kisi bhi act me vivad ki sthiti me uska angrezi version hi manya hota he hindi nahi.

Manish Pundir said...

bhai yar acha or pechida muuda uthya h.or bhut bhakhubi kattaksh kiya h.bhagu apki is hunar ko or nikhare god bless u

Unknown said...

hi I like ur this msg it's given a msg to all of those perso make a your hindi language has been remove your country...............
I proud of you bcoz u have a exclent work in this thrue of article.............